STORYMIRROR

अमित प्रेमशंकर

Action Inspirational Others

4  

अमित प्रेमशंकर

Action Inspirational Others

शबरी के जूठे बेर

शबरी के जूठे बेर

1 min
11

 शबरी के जूठे बेर



शबरी के जूठे बेर प्रभु के 

ऐसे मन को भाए रे  

जैसे मईया कैकयी के   

आंचल का ममता पाए रे

  

कौशल्या के भाव थे मन में       

राजभोग से प्यारे थे 

नेह के अश्रु मोती जैसे 

कैसे पांव पखारे थे।

बैठ चटाई कुटिया में 

रघुनाथ मेरे मुस्काए रे

जैसे मईया कैकयी के 

आंचल का ममता पाए रे।।



धन्य हुई माता भिलनी 

वर्षों से राह निहारी थी 

स्वागत में निस दिन शबरी

आंचल से राह बुहारी थी ।

कर के दर्शन रघुवर भी 

बस मंद मंद मुस्काए रे

जैसे मईया कैकयी के 

आंचल का ममता पाए रे।।



संधि के लिए सुग्रीव से 

ऋष्यमूक का राह बताई है 

लेकर ज्ञान प्रभु से फिर 

निज बैकुंठ धाम पधारी है 

भक्ति से प्रसन्न राम जी 

अंत: तल से हर्षाए रे

जैसे मईया कैकयी के 

आंचल का ममता पाए रे।।



कवि अमित प्रेमशंकर ✍️ 





















































Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action