तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
तुम लाए हो जीवन संगिनी बनाकर
तुमसे सिर्फ़ प्यार की दरकार चाहती हूँ
तुम्हारे मकान को घर बनाने आयी हूँ
हर क़दम पर तुम्हारे साथ देने का एहसास चाहती हूँ
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
कमियाँ हर किसी में होती हैं
ग़लतियाँ हर किसी से होती हैं
फिर मुझे ही क्यूँ कटघरे में खड़ा करते हो
इस बात का जवाब चाहती हूँ
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
सबको अपना बना लिया धीरे धीरे
तुमसे सिर्फ मेरे एहसासों को अपना
समझने का प्रयास चाहती हूँ
क्यूँ हूँ अभी तक सबके लिये परायी
इस बात से रूबरू होना चाहती हूँ
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
यूँ तो मैं भी पढ़ी लिखी हूँ, कमाना भी जानती हूँ
पर जब घर में अपनी ज़रूरत समझती हूँ
तो तुम्हारे और बच्चों के लिये
अपने सपनों को भी दरकिनार कर जाती हूँ
उन सपनों को अब जीना चाहती हूँ
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
यूँ तो कुछ भी नहीं चाहिए सम्मान के सिवा
पर इस घर से निकल जाओ या ये घर तुम्हारा नहीं
जैसे शब्दों से पहले हक़ के साथ, मेरे कुचले हुए
आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की पाई पाई चाहती हूँ
अपने निभाए फ़र्ज़ों की लम्बी फ़हरिस्त तैयार कर
उन सबकी भरपायी चाहती हूँ
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
हम औरतों को नहीं होती भूख किसी धन की
मैं तो ख़ुशियों को फलते फूलते देखना चाहती हूँ
इतने वर्षों में भी जो मन और दिल को नहीं समझ पाया
उस रिश्ते को भी जान से भी ज़्यादा मानती हूँ
कुछ और नहीं बस दिल का सुकून चाहती हूँ
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
इन दीवारों पर नहीं, घर की नेमप्लेट पर नहीं
तुम्हारे मन दिल आत्मा पर अपना वास चाहती हूँ
समझो मेरी भी अहमियत इस घर को बसाने में
बस इस बात को समझाने की हर कोशिश चाहती हूँ
कुछ और नहीं बस
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ।