धरती को रौंद रहे पापी
धरती को रौंद रहे पापी
धरती को रौंद रहे पापी लालच ने आग लगाई इन जीवों की रक्षा हेतु तुम आ जाओ रघुराई। चीख रहे गज,मृग,मयूर तड़पे हर वन के प्राणी हरे भरे ईश्वर की बगिया दुष्टों ने उजाड़ी... बेघर हो गए जीव कई कितनों ने जान गंवाई इन जीवों की रक्षा हेतु तुम आ जाओ रघुराई। सियासती असुरों से भगवन धरती को बचा लो एक एक कर के हर रावण हर कंसों को सजा दो... आधुनिकता की फेर में फिर इंसान बना है कसाई इन जीवों की रक्षा हेतु तुम आ जाओ रघुराई। कवि:- अमित प्रेमशंकर ✍️
