जटायु के अंतिम शब्द
जटायु के अंतिम शब्द
जटायु के अंतिम शब्द
निच निशाचर रावण तेरी सीता को हर ले गया।
वायु मार्ग से दक्षिण को वह अपने घर को ले गया।
हे राम मैं बहुत जूझा पर दंभी को ना रोक सका
चीखती, चिल्लाती बेटी के आंसु मैं ना पोंछ सका।
वृद्ध देह का होकर भी मैं उसपर जा हर वार किया
पार न पाया मुझसे तो मेरे पंखों पर प्रहार किया ।
खून से लथपथ काया के नस नस में ऐसा पीर पड़ा
फिर होकर लाचार विवश मैं धरती पर आ गीर पड़ा
पंखहीन होकर अब क्या मैं रावण से बदला लूँगा
शर्मिंदा हूंँ राम मेरे दशरथ को क्या उत्तर दूंगा ।
मेरा नाम जटायु है दशरथ थे मेरे मित्र बड़े
पुत्र वधू सीता की खातिर पंख मेरे ये खूब लड़े
प्रतिक्षा में राम तेरे मैं प्राणों को था रोक रखा
हे राम मैं बहुत जूझा पर पापी को ना रोक सका।
कवि -अमित प्रेमशंकर
