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Sangeeta Ashok Kothari

Tragedy

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Sangeeta Ashok Kothari

Tragedy

कोहरे का कोहराम

कोहरे का कोहराम

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सूरज सहमा लगता है कोहरे वाली सुबह सुहानी,

रश्मियाँ झाँकने लग जाती मानो खेल रही लुका छिपी,

सुनहरा गोला भास्कर का खेले धरा संग आँख मिचौली,

धुंधलका छाया आसमान में पर ये स्याह रात तो नहीं।।


हर गली में हर शहर में कोहरे का कोहराम है

पैसा कमाने की होड़ में इंसानियत दरकिनार हैं,

स्वार्थ की दुनियाँ में जन्मा प्रदुषण नाजायज औलाद हैं 

गैरकानूनी तरीकों के फलस्वरूप छाया अँधेरा चारों ओर हैं। 


कोहरे के इस बोझ से सिहर उठी है धरती,

जैसे सूरज की रौशनी भी शायद माँग रही मुँह दिखाई,

स्वार्थ के सोपान चढ़ते चढ़ते रोंद रहे इंसान धरती माई,

तभी तो प्राकृतिक आपदा ज्वालामुखी

वृष्टी से बदला ले रही।


कोहरे के आगोश में ठहर गई है ज़िन्दगी

प्रकृति भी मानो हर पल हर दिन मौसम बदल रही,

मानवीय क्रूरता का बदला प्रकृति अपने हिसाब से ले रही,

कोहरा गतिरोधक हैं अवधान हैं मंज़िल की बाधा भी।


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