मंज़िल बदल गयी....
मंज़िल बदल गयी....
बचपन को बिदा कर,
तरुणाई मे रखा था कदम,
सारी जमीं को नापा करते थे,
आसमान मे अरमान रखते थे,
एक दिन एक बहार गुजरी,
इश्क - इत्र की बौछार उडी,
आँखों मे मासूम शरारत थी,
सादगी और ताजमहल की मूरत थी,
दिल के तार झंझना उठे,
नजरे भी बार बार ढूंढे,
जाने जिंदगी में कैसी हलचल हुई,
मानों रेगिस्तान मे बरसात हुई,
पर, बस निहारता ही रह गया,
कभी लब्जों मे बयाँ कर ना पाया,
देखते ही देखते उसकी बारात आ गयी,
चाँद सितारों की डोली मे सज के चली गई,
वक्त ने खुबसूरत जखम पर मरहम लगा दिया,
ना जाने दिल के किस कोने मे समा दिया,
कल तक वो गली मंज़िल थी मेरी,
अब मेरी मंजिल बदल गयी....