और राहें सिमट गई....
और राहें सिमट गई....
जिंदगी की राह चलते हुए,
मिल गई उसे वो सावन मे भीगते हुए,
अरमाँ दिल के मचलने लगे थे,
दोनों आसमाँ पर चलने लगे थे,
इश्क़ की आग में जलने लगे थे,
मोहब्बत की दुनिया में सैर करने लगे थे,
आई बेला आजमाइश की ,
जमाने में अपना इश्क जताने की ,
दुनिया के डर से वो मुकर गयी,
इज्जत की बेदी पर मुहब्बत चढ़ गयी,
मायूस हो कर उसकी बेवफाई से,
बेचारा मजबूर हो अपनी तन्हाई से,
जज्बात की तबाही दोनों ओर होने लगी,
एक ओर डोली तो एक ओर बारात सजने लगी,
बारात सजकर चली गुमनाम राहों पर,
डोली उसकी उतरी अंजान के द्वार पर,
वक्त अपनी चाल चल गई,
हाय, अब दोनों कि राहें सिमट गई....