"रंग इश्क का"#31writingprompts
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इश्क का रंग
कुछ यूं गहरा गया,
कि बेरंग सी ज़िन्दगी
में मानो जान आ गई हो
अब बिछड़ने की कल्पना से ही
आंखें उनकी नम हो गई कि
पलकें के साथ आत्मा भी
भीगी भीगी सी हो गई
इश्क में,
तेरे मेरे दरमियान के फासले
मायने नहीं रखते अब।
दिल में बसे हो,
दूरी की क्या बिसात है
मिल के भी मिल न सके,
यहां तो क्या ग़म है ?
इस ज़मीं से दूर,
बनेगा आशियां अपना
इश्क की बाजी हार के,
भी जीत लेंगे हम,
कि आसमां से परे,
दो दिल मिल कर रहेंगे।

