STORYMIRROR

Priyanka Saxena

Abstract Inspirational

4  

Priyanka Saxena

Abstract Inspirational

डायरी की शिकायत

डायरी की शिकायत

1 min
300

डायरी मेरी आजकल मुझसे कहा करती है-

क्यों मैं यूं ही पड़ी रह जाती हूॅ॑ ?

क्या तुम कुछ पाती नहीं लिखने लायक

या मन भर गया है मुझसे तुम्हारा ?


मैं वहां अटारी पर रखी मैली

धूल-धुसरित हुई जाती हूॅ॑।

पन्ने मेरे पलटे बिना चिपक गए‌ हैं,

कागज़ मेरा पीला पड़ने लगा है।


डायरी की शिकायत सुन निशब्द हुई मैं,

खुद पर लज्जित, शर्मिंदा हो बोली-

तुम तो मेरी प्रिय सखी हों,

मेरी भावनाओं के सैलाब को सम्हाले हों !


क्या करूं कि शब्द मेरे कुछ बिखर से ग‌ये हैं,

आंचल में चुनकर बांधा उनको है मैंने।

आती हूॅ॑ सखी मिला करूंगी तुमसे,

किस्से साझा अनगिनत होंगे तब,


कलम को और पैनी कर लिया मैंने,

धार से प्रहार‌ करना सीख लिया है अब !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract