कभी अलविदा ना कहना!
कभी अलविदा ना कहना!
चुप्पी लबों पर दिल में तूफ़ान सा है,
मूक ना होकर भी बोली मौन है,
अति सम्भल कर,
क्यों बोलती हर शब्द तुम?
ऑ॑खें हंस देती हैं,
नयना फिर भरे से क्यों लगते हैं?
लबों पर सजी मुस्कूराहट है।
मुस्कूराहट में छिपी कसमसाहट है!
कसमसाई तुम तहों में बिखरी पड़ी है,
आकुल हो बाहर आने को!
मानो सात पर्दो का पहरा है,
खुलकर सांस आज ले ही लो!
जी लो मन भरकर,
क्या मालूम कल हों ना हों!
होठों पर आती मुस्कान को
छिपाओ ना यूं चिलमन में,
रोको ना जज़्बातों को,
मुसाफ़िर हैं जिंदगानी के,
अपने-अपने रास्ते चलें आज,
बस कभी अलविदा ना कहना
कि किसी मोड़ पर टकराने की
संभावना मुस्कान लबों पर ले आती है!