ग़र जज़्बात समझ लो
ग़र जज़्बात समझ लो
ऑ॑खें नम क्या हो आईं,
आंकने लगे , तौलने लगे।
कमज़ोर ना समझिए जनाब,
कि उफनते समंदर में
छुपा रखें हैं जाने
कितने जज्बातों, भावनाओं
का लहलहाता ज्वार-भाटा।
विचार मंथन गर करो तो
पाओगे अनगिनत अनछुए,
असीमित एहसासों के मोती,
ऑ॑ख से टपका हर ऑ॑सू
बेमिसाल है, अनमोल है।
स्वयं नहीं अपितु दूसरों के लिए,
उनकी पीड़ा को, कष्ट को,
परिमार्जित करने के लिए ,
परिभाषित करता वो
अपने से परे उनके
दुःख - दर्द व संताप।
वो ऑ॑खों से गिरता नीर
बेकसी बखानता,बेबसी दर्शाता,
कुछ अपनों की ,कुछ अनजानों की,
वो ऑ॑सू रोशनी हीरे सी बिखेरें
ग़र जज़्बात समझ लो।
कि जिगरा दूसरों के लिए रोने का
हर किसी के पास नहीं होता !
कमज़ोर नहीं है, भावना जान लो।
दिल हीरा है यह, अनमोल इसे मान लो।