दिल का पत्थर
दिल का पत्थर
जान लगा दी जिसे मैंने जिताने में,
कोशिश उसकी रही मुझे मिटाने में।
जिंदगी का क्या वो तो बस,
यूं ही निकल जाएगी जताने में।
पत्थर जो फेंका था दूर तलक मैंने,
कैद बरसो से था तेरे तहखाने में।
हसीं लगना, सितम करना और है
बरसो लगते है तुम्हें कुछ बताने में।
जबां पे तुर्श अभी भी रखा है मैंने,
दिलदार तू ही क्यूं है इस जमाने में।
तेरा देखना फिर पलट जाना यूं,
बहुत मजा आता है क्या सताने में।
सुनो, मुझसे मोहब्बत और ऐसे,
क्या मजा है आधे में छोड़ जाने में।
मैं जानता हूं तुम्हें कई सालो से,
कई साल लगे है तुम्हारे पास आने में।
जान ज़िंदगी जाया कर दी मैंने,
बरसो लगे अपनी जान के पास जाने में।