कागज़ पर उतारो दिल को जनाब!
कागज़ पर उतारो दिल को जनाब!
सच है जो लिखेगा वही दिखेगा
जो दिखेगा वही बिकेगा।
दिखने और बिकने की दौड़ में,
सबसे आगे निकलने की होड़ में,
लेखनी से इंसाफ भूल जाना नहीं,
लेखन छोड़ता है छाप व्यक्तित्व की।
तो बिकने दिखने की चिंता छोड़,
कागज़ पर उतारो दिल को जनाब!
कहीं दूर शफ़क़ की लाली से,
पार कर सात तहो के पर्दों को,
रंग डाला है कागज़ का पटल,
उमड़ते ढुलकते जज़्बातों से।
बिखरते अल्फाज़ है कि
मोती सजे हैं मटर माला के।
ऐसी लेखनी का जादू जब चलेगा,
चलते हुए कदम रुक जाएंगे,
एक बार तो पलटकर देखेंगे
कमाल कलम का छा जाएगा।
दिल से मासूम नज़्म गढ़ने को
वो किल्क जब पन्ने पर चली है,
तारीख गवाह है हर युग में
खासोआम ने दिल से नवाजा है।