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Dinesh paliwal

Drama

4.3  

Dinesh paliwal

Drama

ज़िद

ज़िद

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अब खींचो न डोर इतनी, कि ये डोर टूट जाये,

वक़्त रहते ही थाम लो, न फिर हाथ छूट जाये,

हर जिद को नहीं हासिल,एक मुक्कमल मंज़िल,

जाम उठालो, न कोई और ये महफ़िल लूट जाये।


तेरी कोशिश नहीं जाया, कि तू है लड़ा तूफानों से,

कुछ तो हवा बदली है,ये दिखता है आसमानों से,

दरिया को बांधने की, तेरी कोशिश है फिर रंग लाई,

तूने जोड़े हैं बहुत से पुल, जो टूटे थे कई जमानों से।। 


जीत और हार की जद में हो हर बात, क्या जरूरी है,

कोशिश तो दोनों ही ने,अपनी सामर्थ से की पूरी है,

तेरी समझ को मैं,तू मेरी को न बदल पाया तो क्या,

चल के सफर पे जरुर, हमने कम कुछ तो दूरी की है।


सच है कि जो मेरी तमन्ना है, वो ही तेरी भी चाहत है,

जिनके सुकून को में तड़पा, तूने चाही उनकी राहत है,

फर्क हो सकता है यार, आज मंजिल की राह चुनने में,

नसमझे बस जमाना कि,हमको कोई तुमसे अदावत है।


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