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Dinesh paliwal

Drama Classics

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Dinesh paliwal

Drama Classics

मन विहग

मन विहग

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उड़ने लगा मन का विहग, कैसी कपोलित कल्पना पर,

रंगों ने फिर है जादूगरी की, ठहरी हुई इस अल्पना पर।।


नाचता मन का मयूर,समय की फिर उठती हर ताल पर,

अब न कोई लाचारी और न रंजिश,है इसे इस हाल पर।।


ठान कर बैठा है अब ये, जय पराजय न किंचित डिगाती,

संसार के इस समर में बस,बुझने न पाये जीवन की बाती।।


जो रहा ये जीवन तो कितने, आगे रण और भी हौंगे खड़े,

जीत हो या हार हो अब, पर संतोष ये वो सब मैंने लड़े।।


फिर व्यथित होगा न मन अब, ना मायूसियां ही आयेंगी,

मौसम कोई अब मीत हो, गीत दिल की कोयल गायेगी।।


चल पड़ा है काफिला, हर मंजिल नज़र आती है मुमकिन,

अब कुछ फासले घटने लगे हैं, बस दूरियां रह जाएंगी।।


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