बजे प्रकृति के साज, पुलक उठते वन उपवन बजे प्रकृति के साज, पुलक उठते वन उपवन
मटमैली चादर सी..., चहुँओर ही छाई है, "गोधुलि-बेला" हो आई है! मटमैली चादर सी..., चहुँओर ही छाई है, "गोधुलि-बेला" हो आई है!
हारने की कितनी कोशिश कुछ न बदल पाने की छटपटाहट हारने की कितनी कोशिश कुछ न बदल पाने की छटपटाहट
अब कुछ फासले घटने लगे हैं, बस दूरियां रह जाएंगी।। अब कुछ फासले घटने लगे हैं, बस दूरियां रह जाएंगी।।
नव विहान का लेकर संदेशा भास्कर नभ पर शोभित है! नव विहान का लेकर संदेशा भास्कर नभ पर शोभित है!