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Rashmi Singhal

Others

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Rashmi Singhal

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गोधूलि बेला हो आई है

गोधूलि बेला हो आई है

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निज नीडों में लौटते विहग

धरते पथिक गृह में पग,

मटमैली चादर सी...,

चहुँओर ही छाई है,

"गोधुलि-बेला" हो आई है,


बीत चुके हैं तीन पहर

देहरी पर गई निशा ठहर,

संध्य-वंदना की पड रही...,

हर ओर गूँज सुनाई है,

"गोधुलि-बेला" हो आई है,


बैठी बैठक आँगन-चोपालों में

खेलते बच्चे गली-गलियारों में,

घर-घर के साँझे-चूल्हे ने...,

दिशा-दिशा महकाई है,

"गोधुलि-बेला" हो आई है,


लो गया फिर हाथों से छीन

ओर एक,जीवन का दिन,

आने वाले नए दिन की...,

ये उम्मीदें लाई है,

"गोधुलि-बेला" हो आई है।

 

"गोधूलि" शब्द का अर्थ है - गो + धूल = 

अर्थात गायों के पैरों से उठने वाली धूल। 

पुराने समय में जब गायें जंगल से चरकर 

वापस आती थीं तो पता चल जाता था 

कि शाम होने वाली है। इसलिए इस समय 

विशेष को गोधूलि बेला कहने लगे। 

अर्थात संध्या का समय।


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