थककर बैठा क्यों है उठ चल थककर क्या हासिल होगा इन्हीं दुआओं के सहारे चल रहा हूँ आज भी थककर बैठा क्यों है उठ चल थककर क्या हासिल होगा इन्हीं दुआओं के सहारे चल रहा हूँ आ...
मै बस चैन से जीना चाहता हूँ मै बस चैन से जीना चाहता हूँ
संरेख धरा पर पंक्तिबद्ध होती कभी मदमस्त हटती.. संरेख धरा पर पंक्तिबद्ध होती कभी मदमस्त हटती..
I am deleting my poems. I am deleting my poems.
नव विहान का लेकर संदेशा भास्कर नभ पर शोभित है! नव विहान का लेकर संदेशा भास्कर नभ पर शोभित है!
मोरनी का नृत्य अब तक क्यों रुका नहीं, पल्लवों के रिमझिम को समझा उसने बरखा यही। मोरनी का नृत्य अब तक क्यों रुका नहीं, पल्लवों के रिमझिम को समझा उसने बरखा यही...