साधु या शैतान
साधु या शैतान
अंधकार छटने को है
पौ बेला फटने को है
नहीं थमता मन का मलंग
नहीं थकता मन का विहग
जीतने के कितने यत्न
हारने की कितनी कोशिश
कुछ न बदल पाने की छटपटाहट
और न जाने क्या-क्या
बचपन की वो उमंग
अब कहाँ
उसको भूले ज़माना
या ज़माने में
उसको भूले हम
अधिकार की बात
सब करते है लेकिन
समझने की बात
कोई नहीं करता
मन का क्या कहूँ
साधु भी है
और शैतान भी है मन.....
