ग़ूरूर
ग़ूरूर
हर तरफ़ तस्वीरे बिखरी है
बस तस्वीरे
और भी बनेगी तस्वीरे
हर तस्वीर रंगों मिजाज़ से अलग
फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का कुछ और कहेगी
कुछ बिगड़ जायेगी तस्वीरे
कुछ बिगड़ के संवर जायेगी तस्वीरे
और कुछ अधूरी मिटनी है तस्वीरे
तक़दीर के रंगो ने अजब खेल खेला है
दूर से जो ख़ुशनुमा पैकरे जमाल हुआ
अन्दर से अफ़सुर्दा बहुत अकेला हुआ
क़्या ख़ूब है उस मुसव्विर का फ़न
फूँक कर मिट्टी मे जान
ज़िन्दगी अता करता है
है अजीब इस मिट्टी का मिजाज़े शौक़
कभी उड़ने को कभी पत्थर हो जाने की
तमन्ना करता है
दिल है दिमाग है
मगर
दुनिया के रंगों ने
एक पर्दा महमिल पे डाल के
सोचता है
ज़मीं मैंने संभाली है
आसमाँ मैने उठा रखा है।