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Shahwaiz Khan

Romance Tragedy Fantasy

4.5  

Shahwaiz Khan

Romance Tragedy Fantasy

ज़हर

ज़हर

1 min
340


फिर एक आह ने ज़ख़्म छू लिया है

तेरा नाम जब किसी ने लिया है


तार से निकली हुई ये धुन

अब मेरी रूह से लिपटती सी महसूस होती है

मुझे अफ़सोस है तो बस यही

तुझे मेरी कमी क़्यूं महसूस नही होती है


तुझे क्या पता

स्कूल की क्लास हो या

रास्ते से गुज़र 

या यूँ ही कही

दफ़तअन तेरा मिल जाना


ख़ुदा की क़सम

दिल ओ जाँ पे तेरा

सूरुर छा जाना लाज़िम था


तेरा अक्स तेरी आवाज़

को में आँखों और कानों में क़ैद कर के

रातों को छत पर

आँखों को मूँदकर

घंटों तलक अपनी रूह को तस्कीन देता था


तेरी तस्वीर को उकेरा है जब कभी

कैनवस पे

तेरी आँखें तो बन गई जैसे तैसे मगर

तेरे होंठों में रंग भरते हुए

हाथ कँपकँपा गए

ये सोचकर कि

कहीं ऐसा ना हो

मुहब्बत की शराब में

बिन चाहे हवस घुल ना जाए

और

ये मेरे जाम को ज़हर ना कर दे


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