इंसान
इंसान
बहुत ही मुश्किल अब मैं काम करने लगा हूँ
इंसान बनने की कोशिश में लगा हूँ
जानता हूँ
बहुत दुश्वार है
समन्दर तैरकर पार करना
कहाँ मुमकिन है
अकेले जंगल में रहना
जो लिखा जाना था, लिखा जा चुका
जो पढ़ा जाना था, पढ़ा जा चुका
मैं अब अमल में लाने में लगा हूँ
जैसे
पत्थर पिघलाने में लगा हूँ
कोई चाह मुझे किसी से नहीं
कोई राह दुनिया की मेरी नहीं
मैं जिस्म को नहीं
रुह अपनी जगाने में लगा हूँ
मैं अब
फ़िक्र करूँ भी किसका करूँ
ज़िक्र करूँ भी किसका करूँ
मैं दरिया में टपकी
एक बूँद गंगा जल को ढूँढने में लगा हूँ
मैं आदमी से इंसान बनने चल पड़ा हूँ
बहुत ही मुश्किल अब में काम करने लगा हूँ
इंसान बनने की कोशिश में लगा हूँ