एक अनोखी-सी बूंँद
एक अनोखी-सी बूंँद
ज़रा से दुख के एहसास से,
आँखों से छलकती है,
एक अनोखी-सी बूंँद।
दुख में तो यह आती ही है।
सुख की भी यह साथी है।
कभी कल्पनाओं में छलकती है।
कभी आशाओं से जन्मती है।
कभी आँखों में ना छलक,
दिल में ही बह जाती है।
कभी सारे दुखों को बहा ले जाती है।
मन के भारीपन को यह हटा जाती है।
खुद मन की गहरी खाई में जा,
कहीं ना कहीं दूर टपक जाती है।
कभी आशा के पूरा हो जाने से,
कभी सुख का अहसास हो जाने से,
कभी दुख के बादल छा जाने से,
जुड़ ही जाती है यह,
ज़िंदगी के हर पड़ाव से।
मन के हर एक एहसास से।
यह एक अनोखी-सी बूँद।