मन की खिड़की
मन की खिड़की
रास्ते तमाम बंद से लगने लगे थे,
सूझ रहा था नहीं कोई किनारा।
अपने आप को गंभीरता से टटोला।
मन की तो खिड़की ही बंद पड़ी थी।
दिल के कोने में भी कुछ मैल जमी थी।
खोल दिया फ़ौरन उस खिड़की को मैने।
तत्काल देने लगा जीवन खुशहाल इशारा।
चहुंओर दिखने लगा सुंदर जीवन नजारा।