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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Romance Inspirational

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Romance Inspirational

3.हरिगीतिका छंद-रेगिस्तान

3.हरिगीतिका छंद-रेगिस्तान

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समता मरु सी हो सदा,

प्रियतम रखना ध्यान।

बूॅंद-बूॅंद जब प्रेम हो,

भीगा रेगिस्तान।।


जाने भाषा चाह की,

बनता वही महान।

प्रेम भाव जब राह हो,

पुष्पित हिन्दुस्तान।।(दोहा)


करते पिया प्यासे सभी,

सम्मान रेगिस्तान का।

बहते रहे हिय पौन भी,

हो प्यार के उत्थान का।।


सस्ता बिके बाजार में,

जब चाह भी धनवान‌ का।

कहिए यही तो हाल है,

बिखरे किसी गुलदान का।।


पिय की सहे हर बात को,

नित-नित पिया मन भीत से।

हिय की अगन जल-जल कहे,

बुझती सदा यह प्रीत से।।


हमने किया था प्रेम ही,

सुन लो उसी संगीत से।

रज-रज मिले जिस भाव से,

पूछो बहे नवनीत से।।


हिय नंदिनी तुम आस हो,

अब प्रीत का ही मान हो।

हूॅं मैं अकेला आज भी,

तुम जीव जीवित जान हो।।


तुम हर्ष हो उत्कर्ष हो,

तुम प्राण प्रिय मम आन हो।

तुम जीव के वाणी वही,

सुमधुर धुनी तुम गान हो।


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