हिंदी ही मेरा चरित्र है। हिंदी का विस्तार मेरा निजी विस्तार होगा।
अनगिनत सच काले रंगों में रंग दिए गए थे। होठ इतना ही कह पाए- रफ़ीक ऐसा नहीं था। अनगिनत सच काले रंगों में रंग दिए गए थे। होठ इतना ही कह पाए- रफ़ीक ऐसा नहीं था।
एक लंबी साँस खींचते हुए उन्होंने मुझसे पूछा आज कितनी तारीख है ? मैंने कहा- पंद्रह अक्टू एक लंबी साँस खींचते हुए उन्होंने मुझसे पूछा आज कितनी तारीख है ? मैंने कहा- पंद्र...