हिंदी ही मेरा चरित्र है। हिंदी का विस्तार मेरा निजी विस्तार होगा।
मानस के कुंठित कंठों को सुमधुर, सरस-से गान दो मानस के कुंठित कंठों को सुमधुर, सरस-से गान दो
अभी तो इनका एक-दूसरे में सिमट आना शेष है। अभी तो इनका एक-दूसरे में सिमट आना शेष है।
अमरत्व की आकांक्षा क्योंकर होती है अमरत्व की आकांक्षा क्योंकर होती है
तुम जो हृदय में स्पंदन हो षड़यंत्र नहीं है यह ! तुम जो हृदय में स्पंदन हो षड़यंत्र नहीं है यह !
फिर एक समय वह भी आया जब उसने बस विषपान किया फिर एक समय वह भी आया जब उसने बस विषपान किया
शशि को भी सहना पड़ता है रवि की ज्वलंत किरणों का ताप! शशि को भी सहना पड़ता है रवि की ज्वलंत किरणों का ताप!
वह कौन निशा का एक समर्पण ? वह कौन उषा की मूक फिरन ? वह कौन निशा का एक समर्पण ? वह कौन उषा की मूक फिरन ?
मनुष्य का चरित्र मनुष्य का सत्य होता है सत्य भी वह नितांत अपना। मनुष्य का चरित्र मनुष्य का सत्य होता है सत्य भी वह नितांत अपना।
मनुष्य का चरित्र मनुष्य का अपना होता है नितांत अपना! मनुष्य का चरित्र मनुष्य का अपना होता है नितांत अपना!
ये रक्तबीज हैं जानो तुम अब इन पर चलो प्रहार करो ये रक्तबीज हैं जानो तुम अब इन पर चलो प्रहार करो