पेड़
पेड़


बरसों पहले एक नन्हा बीज
धरती में जा पेड़ बना
पानी, खाद थोड़ा दुलार
पाकर देखो वह खूब तना
खिल कर डालियाँ जब लहराईं
संगीत-सुमधुर हर ओर छिड़ा
सावन में झूलों की पेंग बढ़ा
था सात सुरों के साथ खड़ा
उड़ते पंछी का बना घोंसला
हर राही को था छाँव दिया
मन के बेचैन शहर को उसने
ठहरा-ठहरा इक गाँव दिया
था मग्न तपस्वी के जैसा
अपने हर कण का दान किया
फिर एक समय वह भी आया
जब उसने बस विषपान किया
कट कर गिरा वह धरती पर
रोया, चिल्लाया, शांत हुआ
है उसका ही अभिशाप तुझे
जो तू इस तरह अशांत हुआ
जाग! कि अब न सोया रह
साँसों को यूँ न घुटने दे
अनमोल बड़ा है यह जीवन
इसकी सत्ता न मिटने दे
फिर से बने धरा यह सुंदर
हरियाली के रंग सजें
जीवन खुशहाल रहे सबका
एक-एक कर फिर पेड़ लगें