तुम
तुम


तुम जो हृदय में स्पंदन हो
षड़यंत्र नहीं है यह
किसी दिन स्वयं को बाँध कर देखो
मेरा घुट कर थम जाना
तय है......
पृथ्वी, सूर्य और चाँद के खिंचाव-सा
यह अभिसार निरंतर
बिना किसी आमंत्रण
तुम्हारी ओर एक अदेखी रेखा
नापता ,उद्दाम कुछ कामनाएँ लिए
खिंचता ही जा रहा है .....