Beena Ajay Mishra

Abstract Tragedy Classics

4.5  

Beena Ajay Mishra

Abstract Tragedy Classics

भूख और चरित्र

भूख और चरित्र

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वह! जिसका पेट ,

भरा हो

ठसाठस, लबालब 

तय है कि उसकी सूजन

इंच दर इंच कम करने

वह लगा पाता है


महँगे, चमचमाते

जिमखानों की 

बेहिसाब प्रदक्षिणा

कर पाता है नए 

वैज्ञानिक अनुसंधान 

कि ठसाठस, लबालब भरे

उदर पर जमी चर्बी की 

जिद्दी परतों को कम करना

उतना ही सहज है


जितना कि उसे सहेज कर

धरना और किसी पहचानी

घोषणा हेतु गाहे-बगाहे 

उसे सहलाते भी रहना


कठिन है उसके चरित्र का

सही-सही आकलन कर पाना

हिमालय के उत्तंग शिखर

अपनी कंदराओं में कब

विलीन होते हैं ?

और....वह ! जो भूख से

किलबिलाता कीड़े की मानिंद 

बदस्तूर देखा करता है

सड़क के किनारे खड़े 

अकड़ रहे ठसाठस, लबालब 

कूड़ेदान को

सरल है उसे कई

चरित्र-प्रमाण पत्र 

एक साथ थमा पाना


क्योंकि वह हर क्षण 

अपने मनुष्य होने की

प्रामाणिक अवस्था में

सहज ही मिल जाता है।


इसीलिए कहते हैं

खाली पेट ढो रहे

मनुष्य का चरित्र 

मनुष्य का सत्य होता है

सत्य भी वह नितांत अपना।


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