जीने का अधिकार तुझे क्या
जीने का अधिकार तुझे क्या


ऐ दुख से घबराने वाले!
जीने का अधिकार तुझे क्या?
पग-पग पर काँटों की शैया
अनुभव कभी किया है क्या?
दुख ने क्या हर लिया था तेरा?
क्षण भर का सुख भला लगा,
सुख-दुख दो जीवन के पहलू
कह, किनसे बचना चाहेगा?
कुछ दिन ही जी ले दुख को
कल तो सुख भी आना है
जो तूने कुछ ना खोया है
फिर क्यों सोचे पाना है?
शशि को भी सहना पड़ता है
रवि की ज्वलंत किरणों का ताप
अपना-अपना क्रम है सबका
फिर कैसा और क्यों अनुताप?
निज स्नेह का अर्पण कर
दीपक भी जलता रहता है
जल-जल कर ही मिले उजाला
मौन भाव में वह कहता है।
तुझको भी जलते रहना है,
थोड़ी शीतलता पानी को
अगर नहीं है इतनी क्षमता
कौन कहता है जीने को??