शेष है!!
शेष है!!
दो शिलाओं के बीच
पनपती घास का
सिर उठा कर
लहराना शेष है
दो हृदय के बीच
सुलगते प्रेम की
आँच में कितनों का
तप जाना शेष है
अभी नहीं मिट सकते
नदी, पहाड़, झरने,
सूरज, चाँद और आकाश
अभी तो इनका
एक-दूसरे में
सिमट आना शेष है।
दो शिलाओं के बीच
पनपती घास का
सिर उठा कर
लहराना शेष है
दो हृदय के बीच
सुलगते प्रेम की
आँच में कितनों का
तप जाना शेष है
अभी नहीं मिट सकते
नदी, पहाड़, झरने,
सूरज, चाँद और आकाश
अभी तो इनका
एक-दूसरे में
सिमट आना शेष है।