सुनो कवि......
सुनो कवि......


सुनो कवि तुम शापित हो
तुम्हें फूल पौधों, झरनों नदियों का दुख लिखना है
तुम्हें लिखना है कि
किसी युद्ध का खात्मा
किस तरह होता है
किस तरह बौने स्वप्नों का
तिल-तिल मरण होता है
सुनो! कवि तुम्हें तय करना है
कि दुख के समस्त अधिकार किसके हैं
बौने सपनों को तौलकर
उन्हें शब्दमय कर देना है
तुम्हें ममता में साँसे भरनी है
और......
प्रेम को पराकाष्ठा पर धरना है
विध्वंस कारी मूल्यों के समय में
तुम्हारा शापित होना ही
ससृति के लिए वरदान होगा कवि
कि तुम्हें तय करनी होगी
संबंधों की मूल्य रेखा
और पीड़ा से उपजे
पिछली पीढ़ी के
भूले कुछ गीत रचने होंगे
देखना कवि कि
तुम्हारा दायित्व ऊंचा होगा
हिमालय के उत्तुंग शिखरों से भी
तुम्हें वहां तक पहुंचना होगा
और समय को पुनः बदलना होगा