सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना


अपनी वीणा के तारों पर
फिर सप्त स्वरों को छेड़ दो
जीवन की विस्मृत पगडंडी को
आज नया एक मोड़ दो।
मानस के कुंठित कंठों को
सुमधुर, सरस-से गान दो
प्रलय गमन करती आशा को
पुनः वही उत्थान दो।
विकृतियों के बढ़ते तन को
बार-बार संहार दो
विकल हुई मन की गरिमा को
सुंदर साज, शृंगार दो।
अधम, अमानुष, अत्याचारी
अकृत्यों को ह्रास दो
प्राणों को मुक्त-अमुक्त छंदों के
रचते, बसते-से रास दो।
नष्ट करो गहराते तम को
कलुष वृतियों को नाश दो
नृत्य करें सुंदरता दिक्-दिक्
माँ!!आज हृदय को आस दो।