रात ख्वाबों में अक्सर
रात ख्वाबों में अक्सर
रात ख्वाबों में अक्सर कुछ धुंधली-सी यादों का बसेरा हो जाता है,
जब तक उन यादों को समझ पाता तब तक तो सवेरा हो जाता है,
रात के ख्वाबों के इस जद्दोजहद में हमारे दिल के अरमान रह गए
लबों ने साथ न दिया कहना कुछ था और क्या -से -क्या कह गए,
लगा रात के ख्वाबों में हमारे प्यार की यादों की गठरी सी खुल गई,
अतीत के लम्हों को समेटती हुई जाने कैसे सब निशानियाँ बदल गई,
सूखे पत्तों की तरह इधर-उधर मैं कुछ बिखरा बिखरा-सा लग रहा हूँ,
इसलिए रात के ख्वाबों में अक्सर थोड़ा -थोड़ा- सा मैं पिघल रहा हूँ ,
नयन जब अपलक रह जाते कई बार हृदय का निष्ठुरपन खलता है
रात नैनों में बस जाती सारी दुनिया तब लगता नयन नीर-सा ढलता है
p>
रात के ख्वाबों में अक्सर ढूंढता रहता हूँ मैं प्यार की उन यादों को
जिन यादों के सहारे हमने मिलकर कभी सजाए थे रंगीन ख्वाबों को
दूर जाकर भी तुम दूर नहीं हो पल-पल नयनों में मेरे ख्वाब पिरोते हो
रात के ख्वाबों में अक्सर जब ढूँढता तुमको तुम दिल में उतर आते हो
तुम्हें इस तरह याद करके अश्कों में बीत जाती हैं अनगिनत रातें मेरी
रात का घना अंधेरा जब बढ़ने लगता तब याद आती हैं मुलाकातें तेरी
वो वृक्ष रह-रहकर याद आता जिस पर मन्नतों के धागे हमने बांधे थे
वो मुलाकातें सब याद आती हैं जब कई रात हम संग-संग जागे थे
रात मेरे ख्वाबों में अक्सर यादों की नगरी का प्रतिबिंब दिख जाता है
समेट कर रखता हूँ फिर भी फूलों की खुशबू की तरह बिखर जाता है I