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MUKESH KUMAR

Romance

4.5  

MUKESH KUMAR

Romance

चराग–ए–शाम: मोहब्बत

चराग–ए–शाम: मोहब्बत

2 mins
410


वो इक दिन किस तरह हॉस्टल से भाग कर आई थी

छुपते, छुपाते और सब से बचकर मेरे पास आई थी।


पहले पाक क़दम पड़े थे उसके जब ज़मीं पर

जोरों से दिल धड़का और नफ़स थम गई थी।


वह रुका तो कदमों से उसके जैसे शहर सा चलने लगा

जश्न–ए–बहारां से उसके सारा गुलिस्तां महकने लगा।


उसके पांव में जुत्तों के तश्में खुले हुए थे

तशमें भी ऐसे कोई गीत गुनगुना रहे थे।


रेत में सने उसके पांव और चेहरे पर तर उसकी आंखें

हुस्न-ए-ताम ओ शहजादी सज–धज के मेरे पास आई।


देखा, मुस्कुराया और मुझे गले से लगा लिया

और पास की दुकान से जूस ऑर्डर कर लिया।


वो गुलाबी बदन हुस्न–ए–गर्मी में खिले जा रहा था

और मैं उसकी आंखों का असीर बने जा रहा था।


सेब जैसे उसके गाल जुगनू सी रौशनी बिखेर रहे थे

नयन, नक्श और चेहरा ये सब कयामत ले आ रहे थे।


फिर दस्तक दी बारिश ने तअज़्जुब उसके हुस्न पर था

और फिर बहने लगे दरख़्त हवा में अजाब–ए–शब था


दुपट्टा हवा में लहराने लगा उसके बालों को मैं सहलाने लगा

बे–ख़्वाबों से भरी ज़िन्दगी मेरी उसके सपनों में जाने लगा


मेरी तश्बीब उसके सुर्ख होंठों को छू लेना चाहती थी

खूँ थी मुझे उसके लहज़े की वो शानदार ही इतनी थी


उसके मुस्कुराते होंठों पर बादलों की बूंदें टपक रही थी

और फिर बारिश में नहाई वो इक सूरजमुखी लग रही थी


केशूओं से टपकते बारिश से वो लबालब हुए जा रहा थी

उसने जब दुपट्टा उतारा आसमां को भी शरम आ रही थी


नशिस्तें क्यों होती वहां वो खुद विसाल–ए–यार जो था

वो मेरे दिल का चश्मे–चराग और आंखों का नूर जो था


उसने अपनी नरम कलाइयों से मुझको पकड़े रखा था

मस्लहतन उसके ज़ेहन में कोई फिराक़–ए–ग़म न था


वो बाजुओं में टूटकर रिमझिम बरसात कर रहा था

शहर की आबो–हवा का उस पर कोई असर नहीं था


वो इक नग़्मगी लहज़े से मेरे ख़्वाबों को मुकम्मल कर गया

और बनके चराग–ए–शाम मोहब्बत में फना कर गया।


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