प्रेम
प्रेम
जब हम किसी के साथ प्रेम में होते हैं तो
अपने आप को सामने वाले के अनुरूप बदल लेते हैं
जो उसे अच्छा लगने लगे सब करने लगते हैं
पर जब वही व्यक्ति बदल जाता है
तब समझ में नहीं आता क्या करें
जिस के लिए ख़ुद को बदल दिया
अपना अस्तित्व मिटा के उस के हिसाब से ढल गए
जब उसे ही हम अच्छे ना लगे तब क्या करें।
कुछ नहीं कर सकते क्यूँकि सामने वाला बदल चुका है
ये वो है ही नहीं जिससे हमें प्यार हुआ था।
जब दो लोग अलग होते हैं तब सबसे दुखद होते हैं
सब खत्म होने के पहले का समय
जब आख़िरी डोर टूटने को होती है
तब एक अन्तिम उम्मीद होती है जो ना जीने देती है
ना मरने पर ऐसी परिस्थिति में
उम्मीद ना रखना ज़्यादा बेहतर होता है
क्यूँकि जो बदल गया है वो बहुत पहले ही
आपको छोड़ के जा चुका है।
जिस तरह कोई मर जाता है तो उसे
ventilator पर भी रख दो तो भी जीवित नहीं हो सकता
उसी तरह जो बदल गया जो छोड़ गया
वो भी वापिस नहीं आएगा।फिर भी जीना पड़ता है
अपने बदले हुए अस्तित्व को वापिस समेटना पड़ता है
क्यूँकि जो लोग आपसे प्यार करते हैं
वो आपको ज़िंदा देखना चाहते हैं।
यही जीवन है यह ऐसा ही होता है।
बदल के मुझे ख़ुद बदल जाने वाले
मुझे मेरा मैं तो वापिस दे दे।

