बिछड़ना ही नसीब था
बिछड़ना ही नसीब था
तुम्हारी राहों को अपना समझ
हम तुम संग चल पड़े थे,
जब-जब तुम तन्हा दिखे
हम हमेशा तुम्हारे साथ खड़े थे,
पर आज यह क्या हुआ
क्यों किस्मत ने करवट बदली,
साथ तुम्हारा बीच राह पर ही
जाने क्यों हमसे छूट गया,
दूर हुए तुम हमसे
शायद बिछड़ना ही नसीब था हमारा,
आज अकेले खड़े उन राहों में
जहाँ कभी साथ था तुम्हारा !