जीत
जीत
कल्पना नाम था उसका,
कल्पना करना काम था उसका,
कल्पनाओं में खो जाना भाता था उसको,
कल्पना में जीना आता था उसको।
कल्पना संग थीं दो उड़ाने,
नाम था जिनका शिखर और आसमान,
दोनों जगातीं कल्पनाओं का बाज़ार,
चढ़ ऊपर तीनों तकतीं थीं एक साथ।
कल्पना का आया उड़ान का एक दिन,
तीनों भरने लगीं उड़ान एक साथ,
न किसी का डर, न किसी से भय,
बस रहतीं मस्त सी तीनों एक साथ।
कल्पना की कल्पना हुई पूरी एक दिन,
जब बहने लगी कल्पनाओं की झड़ी,
कुछ अधूरी सीं, कुछ पूरी सीं,
जिंदगी में कल्पना ने जीत ली अपने मन की कल्पना।