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Harish Bhatt

Abstract

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Harish Bhatt

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चक्रव्यूह

चक्रव्यूह

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मैंने कभी 

कुछ कहा नहीं

तुमने कभी 

कुछ सुना नहीं

जन्म-मृत्यु के बीच

ना तुम रुके 

और ना ही मैं ठहरा

और फंसते गए 

जीवन के चक्रव्यूह में

अधूरी ख्वाहिश और 

थोड़ी सी तैयारियां

तब कैसे उतरते खरा

उम्मीदों पर तुम्हारी!


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