समझ
समझ
कैसे मान लूं, बात तुम्हारी
समझा है कभी मुझको तुमने
झुर्रियां उग आई चेहरों पर
कुलांचे भरने लगी है अक्ल
कौन सुनता है बात दिल की अब
पैसे की दुनिया में, पैसे का खेल
और बात करते हो, समझने की
वक्त गुजर चुका है समझने का
और कहते हो तुम समझा करो
अभी भी याद है मुझे वह लम्हा
मिले थे जब तुम पहली बार मुझे
बहुत समझाया था मैंने खुद को
और एक तुम थे कि समा गए दिल में
और एक हम थे कि दूर हो गए अपनों से
और तुम कहते हो अब कि समझा करो
अच्छा एक बात बताओ, तुम हो कौन
क्योंकि अभी भी बाकी है यह समझना
आखिर हम क्यों समझे एक-दूसरे को !
