ग़ज़ल
ग़ज़ल
काफिला जिस तरफ चला होगा,
एक बस्ती का रास्ता होगा .
जिसको चाहा कभी था शिद्दत से .
दिल में नफ़रत निबाहता होगा .
इन दिनों वो नज़र नहीं आता ,
किन खयालों में खो गया होगा .
उसकी तुमको ख़बर नहीं कुछ भी ,
वह बुलंदी को छू रहा होगा.
तोड़कर तुमसे प्यार का रिश्ता ,
वह भी टुकड़ों में जी रहा होगा .
बस रहा दिल में जो *सवि* सबके ,
आदमी दिल का वो भला होगा।
