ऐ सागर
ऐ सागर
मैंने कहा
किसी से न कहना
पर दूसरे तट जाकर
मेरे प्रीतम के चरणों में
मेरी अंतरंग
पीड़ा रख दी
तेरे स्पर्श ने
मेरे बिछोह को
चुगल दिया
अंतर्मन को उस
किनारे छोड़ आये
ऐ सागर निर्मोही
मेरी हया को
शर्मसार कर
सरे आम कर दिया....
मैंने कहा
किसी से न कहना
पर दूसरे तट जाकर
मेरे प्रीतम के चरणों में
मेरी अंतरंग
पीड़ा रख दी
तेरे स्पर्श ने
मेरे बिछोह को
चुगल दिया
अंतर्मन को उस
किनारे छोड़ आये
ऐ सागर निर्मोही
मेरी हया को
शर्मसार कर
सरे आम कर दिया....