मैं बनू बुद्ध
मैं बनू बुद्ध
मुझमें न वैसी दृढता है
और न ही वैसा संकल्प
न ही मेरे में कुछ कर
गुजरने की क्षमता लेकिन
फिर भी मैं बुद्ध बनना
चाह रही हूँ उनके जैसे तपस्वी
वैसी ही ईश्वर की आराधना
इधर चाहत बहुत बढ़ रही हैं
लेकिन मेरे कर्म और करने के
हौसले में जबरदस्त
जंग छिड़ी हुई है
मन मस्तिष्क कुछ और कहता है
और शरीर पूरी तरह से
नकार देता यह किस तरह की
विडंबना मैं मेरी रचना की है
प्रभु बताएँ भी
मन में चाह रखना
उसका पूरा न हो पाना
कष्टप्रद होता है यह
आप जानते हैं मेरे दर्द को
पहचानते हैं मेरी छटपटाहट
बैचेनी में मैं उलझी हुई हूँ
किस तरह सुलझाऊँ
कैसे मजबूत कर पाऊँ
सोचती हूँ जो सोचूँ
वह तो कर जाऊँ
मेरे पास दृढ़ संकल्प की
चट्टान हो जो मुझे
किसी भी आँधी में ना
डिगने दे कोशिश करूँ तो
बुद्ध की तरह तपस्या तो
कर पाऊँगी
ईश्वर मैं रम जाऊँ
इतनी ही सी तो अभिलाषा है
फल की चिंता जो नहींं हैं
लालच हैं ईश्वर मैं लीन हो जाऊँ..।