असमंजस
असमंजस
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इतनी ही तो चाहत है मेरी
दुनिया में सब सच्चे हो
सब अच्छे हो
सब सरल हृदय हो
सारी सृष्टि निर्मल हो जाए
कुदरत ने चाहत पूरी भी की
यह समय भी आ गया
कि मैं इतनी शुद्धता में
सांस ले रही हूँ
कैसी विडंबना है ना
यह सब मैंने चाहा था
तब मैंने यह सोचा भी था
कभी भी ऐसा संभव होगा
कि सड़कें सूनी हो जाएँगी
बस्तियाँ वीरान होंगी
परिवार मैं अपनापन जागेगा
बिखरे परिवार अपने
घर की ओर लौटेगे
जो दोड़ का एक दौर
चला था वह खत्म हो गया
कितनी अजीब है न यह दुनिया
कितने रंग भरे हैं
अभी भी लगता है
सब कुछ सपना ही है
ओर इस समय की
मैं गवाह भी हूँ
मन कहता है अब कुछ
गलत नहीं होगा
सब कुछ बहुत सच्चा
सब अच्छे होगे
हर इंसान का दिल
ममत्व से भरा रहेगा
जिसमें कोई भी बुरा
व्यवहार नहीं करेगा
अनोखी यह दुनिया
कितनी आत्मिक शांति
सुख की अनुभूति
समय के चक्र ने
अपना चलना बंद
नहीं किया बल्कि
मेरे दृढ़ संकल्प और
सोच को जबरदस्त
झटका दिया
अगले ही पल
एक धोखा मेरे सामने
आ खड़ा हुआ
मैं अचम्भित यह दुनिया
नहीं बदल सकती
तभी तो जब देखो
तभी धोखा
अच्छाई तो स्थाई है नहीं
अब यह सोचिए
मेरा यह सोचना भी तो
खुली आंखों का धोखा ही है
जो मुझे हो गया।