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Kusum Joshi

Abstract

4.0  

Kusum Joshi

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इमारतें

इमारतें

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धरती के सीने पे खड़ी,

ये गगनचुम्बी इमारतें,

बस एक करवट बदलने की देर है,

और सब समतल हो जाएगा,


फ़िर नहीं कहेगा कोई,

ये तेरा है कोई मेरा है,

मलबे के ढेर पर,

आशियां कौन बनाएगा,


उसी उजड़े गुलशन से,

फ़िर निकलेगी एक बहार,

फ़िर से उठेगा आदमी,

फ़िर से इमारतें बनाएगा,


फ़िर से वही गगनचुम्बी इमारतें,

करवटों का दौर,

ये तो चक्र है साहब,

चलता ही जाएगा।

चलता ही जाएगा।।


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