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Dr. Akansha Rupa chachra

Abstract

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Dr. Akansha Rupa chachra

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मां की बिंदी

मां की बिंदी

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माँ तेरी बिंदी को देखकर तेरे होने का अहसास होता है।

घर की दीवार पर, आईने पर, गुसलखाने के दरवाजे पर तेरी बिंदी ने तेरे होने का हक जताया।

तेरे माथे के चमक का मान बढाती, पिताजी की चिरआयु की दुआओं का भान कराती।

कभी बिंदी वाली छाप का निशान देख तू जल्दी से सुर्ख सिन्दूर से लगाती ।

तेरी बिंदी , काँच की चूडियाँ और सूती साड़ी मे लिपटी सादगी देखकर माँ पिताजी सादा पानी , दाल रोटी भी बड़े छाँव से खाते थे।

उस कच्चे मकान मे हर छोटी छोटी खुशियाँ भी उत्साह पूर्ण मनाते थे।तेरी दुआ में अनोखा भाव था।

माँ ईश्वर से तूने माँगा भी तो , बिंदी अमर हो , संतान खुशहाल और परिवार का सुख। 

तू आज माँ हमारे बीच न होकर भी अंतकर ण मे दमकती है।

बिंदी की तरह तेरी बिंदी चूडियाँ अमर हो गई माँ 

तूने ईट पत्थरों के मकान को मंदिर का रूप दिया।

माँ तेरी बिंदी आज मेरी दिल के पटल पर कुछ प्यार भरी स्मृतियों के साथ चमकती है।

माँ के सौभाग्य का प्रतीक लाल बिंदी। 



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