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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Abstract

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

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चिराग़

चिराग़

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जलते हुए चिराग से घर कोई ना जले।

मरघट में गांव, बस्ती, शहर कोई ना ढले।

करता रहे उजाले फक़त जलके ये चिराग-

ज़रिए से इसके ग़म की डगर कोई ना चले।


जो अंधेरों में रौशनी भरे चिराग है वो।

जो अमावस को चांदनी करे चिराग है वो।

आख़िरी सांस तक माने न हार जलता रहे-

सबके रौशन जो ज़िन्दगी करे चिराग है वो।


चिराग़ जल उठे हैं आज रौशनी के लिए।

सर उठाया है अंधेरों ने सरकशी के लिए।

अपनी किस्मत में लिखा लाए हैं शायद मरना-

इसलिए आ गए हैं आज ख़ुदकुशी के लिए।



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