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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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विचारों का अंतर्द्वंद्व

विचारों का अंतर्द्वंद्व

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तूफ़ान आया और आकर थम गया है

पर इस हृदय में समंदर उफन गया है

ये विचार है की एक पल रुकते नहीं है,

आंख में मेरे सूखा आँसू छलक गया है


मेरा दुःख किसी को बता न सकता हूँ

अपनी हाथों कुल्हाड़ी मार न सकता हूँ

कुछ विचारों का प्रवाह हृदय में ऐसा है,

रोशनी में रहकर भी दिल तम बन गया है


तूफान आया और आकर थम गया है

भीतर का अंतर्द्वंद्व अविराम बन गया है

जितना ज्यादा भीतर चुप प्रयास करता,

उतना ज़्यादा अशांत दरिया बन गया है


फिर भी लहरों के विपरीत हमें चलना है,

विचारों का दरिया हंसकर पार करना है

भीतर ख़ुद का जो हौसला बन गया है

हर विचार, सुबह का सवेरा बन गया है



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