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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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गिरफ्त

गिरफ्त

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 कभी रौनक हुआ करती थी

गली हर समय चहका सी करती थी


कहीं बच्चों के खेलने की आवाजें

कहीं महिलाओं के बतियाने के अदांज


कहीं बुजुर्गों की होती इत्मीनान से बातें

अब तो सब अचानक सिमट सा गया


गली का नज़ारा बदल ही गया

सब अपने घरों में बड़े चैन से हैं 


मोबाइल की गिरफ्त में कैद हैं।


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